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Thahariye... Aage Jangal Hai (ठहरिए...!! आगे जंगल है) (in Hindi)
Kumar, Rakesh Singh
Synopsis "Thahariye... Aage Jangal Hai (ठहरिए...!! आगे जंगल है) (in Hindi)"
ठहरिए...! आगे जंगल है बीसवीं सदी के अंतिम दशक में जिन थोड़े से रचनाकारों ने साहित्य में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज की है, राकेश कुमार सिंह उनमें एक महत्वपूर्ण नाम है।समकाल के जीवन, विलुप्त होते जीवन-रस और मानुष गंध की खोज को राकेश ने पूरी गंभीरता से लिया है। खुरदुरे यथार्थ को कलात्मक ऊंचाईयों तक उठा ले जाने का कौशल, कहानीपन की पुनर्प्रतिष्ठा तथा किस्सागोई में राकेश का महत्वपूर्ण योगदान उनके प्रस्तुत उपन्यास में पुनः पुनः सत्यापित हुआ है। इस उपन्यास की कथाभूमि है झारखंड का एक उपेक्षित जिला... पलामू ! मृत्यु उपत्यका पलामू !रक्त के छींटों से दाग़ दाग़ पलामू !सुराज के सपनों का मोहभंग पलामू ! यह संजीवचंद्र चटोपाध्याय का रूमानी 'पलामौ' नहीं है,न ही महाश्वेता देवी का 'पालामू'! यह अखबारी 'पालामऊ' भी नहीं है।यह ग़रीबी रेखा के नीचे जीती-मरती ग़ैर-आदिवासी आबादी वाला पलामू है जहां पलामू का इतिहास भी है और भूगोल भी।समाज भी है और लोक भी। भयावह कृषि समस्याएं,अंधा वनदोहन,लचर कानून व्यवस्था, अपराध का राजनीतिकरण और भूमिगत संघर्षों की रक्तिम प्रचंडता के बीच भी पलामू में जीवित हैं लोकराग,लोक संस्कृति और आस्थाओं के स्पंदन। वन का रोमांचकारी सौंद