It will be shipped from our warehouse between Monday, July 15 and Tuesday, July 16.
You will receive it anywhere in United States between 1 and 3 business days after shipment.
Manto Aur Main (in Hindi)
Mohan, Narendra
Synopsis "Manto Aur Main (in Hindi)"
'मंटो और मैं' में छिपा हुआ एक सवाल जो मुझ से अक्सर पूछा जाता है वह यह कि मंटो के साथ आप का क्या रिश्ता है। मैं इस सवाल का कभी ढ़ंग से जवाब नहीं दे पाया। हाँ, सवाल के इर्द-गिर्द कई अनुमान ज़रूर खड़े करता रहा जैसे दंगों को वक़्त यानी मेरे जन्म के वक़्त- 30 जुलाई, 1935 लाहौर कर्फ्यू लगा हुआ था और उस के आसपास ही मंटो लाहौर छोड़ बम्बई चला गया।...सन्नाटा और चीख़ ताउम्र मेरा पीछा करते रहे और मंटो का भी। मेरे लिए मंटो के लिए और लाहौर महज़ एक शहरभर नहीं रहा। विभाजन की त्रसदी और विस्थापन ऐसे भयावह संदर्भ हैं जो हम दोनों को अपनी तरह से हाँट करते रहे हैं। संभव है तभी मंटो के बेचैन रूह की एक-आध चिंगारी मुझे छू कर निकल गयी हो। मंटो की राह निराली है। उस राह पर चलना आसान नहीं है, तो भी अलग-अलग राहों से चलते हुए हम एक राह पर आ खड़े हैं- मानवीय हो पाने की चाह के साथ, वास्तविक अर्थ में स्वाधीन हो पाने की तलाश में। यह तो है ही कि पूरा मंटो न एक किताब में आ सकता है, न एक विचार में समा सकता है। एक सुनिश्चित ढाँचे में लदी-फदी सोच उसकी खोज में सहायक नहीं हो सकती। सामाजिक ढाँचे की कुरूपताओं, विद्रूपताओं और विसंगतियों को जिस सादगी और निर्ममता से उसने उघाड़ा है, उसे एक खुली, बेधक, मानवीय दृष्टि स