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Kab tak Pookarun (in Hindi)
Raghav, Rangey
Synopsis "Kab tak Pookarun (in Hindi)"
इस संस्करण में कबीरदास जी के जो दोहे और पद सम्मिलित किए गए हैं, उन्हें मैंने आजकल की प्रचलित परिपाटी के अनुसार खराद पर चढ़ाकर सुडौल, सुंदर और पिंगल के नियमों से शुद्ध बनाने का कोई उद्योग नहीं किया, वरन् मेरा उद्देश्य यही रहा है कि हस्तलिखित प्रतियों या ग्रंथसाहब में जो पाठ मिलता है, वही ज्यों-का-त्यों प्रकाशित कर दिया जाय। कबीरदास जी के पूर्व के किसी भक्त की वाणी नहीं मिलती। हिंदी साहित्य के इतिहास में वीरगाथा काल की समाप्ति पर मध्यकाल का आरम्भ कबीरदास जी से होता है, अतएव इस काल के वे आदिकवि हैं। उस समय भाषा का रूप परिमार्जित और संस्कृत नहीं हुआ था। तिस पर कबीरदास जी स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने जो कुछ कहा है, वह अपनी प्रतिभा तथा भावुकता के वशीभूत होकर कहा है। उनमें कवित्व उतना नहीं था जितनी भक्ति और भावुकता थी। उनकी अटपट वाणी हृदय में चुभनेवाली है। अतएव उसे ज्यों का त्यों प्रकाशित कर देना ही उचित जान पड़ा और और यही किया भी गया है, हाँ, जहाँ मुझे स्पष्ट लिपिदोष देख पड़ा, वहाँ मैंने सुधार दिया है, और वह भी कम से कम उतना ही जितना उचित और नितांत आवश्यक था।