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सर्वे भवन्तु सुखिनः (in Hindi)
Agyaat, Preeti
Synopsis "सर्वे भवन्तु सुखिनः (in Hindi)"
मुझे न दिशाएँ समझ आतीं हैं और न रास्ते, पर फिर भी मैं नई राहों से गुज़रने की हिम्मत जुटा पाती हूँ। पहाड़ की ऊँची चोटी मुझे उतनी प्रभावित नहीं करती जितनी कि वहाँ पहुँचने से पहले की यात्रा सुहाती है। वहाँ मैं कई मर्तबा रुक-रुककर न केवल अपनी श्वाँस को सामान्य करती हूँ बल्कि उस पल भर के ठहराव को भी खुलकर महसूस करती हूँ। प्रायः अपने कैमरे में क़ैद भी कर लिया करती हूँ। यहाँ रोज चढ़ने-उतरने वाले लोग जब डग भरते हुए आगे निकल जाते हैं तो मेरा मन उनके प्रति आदर से भर उठता है और उनके होठों के इर्दगिर्द उभरती दो लक़ीरें मुझमें अपार ऊर्जा का संचार कर देती हैं। रोज चढ़ने-उतरने वाले इन लोगों के मन में कभी भी इस काम को लेकर उबाऊपन नहीं दिखता। ये खुश हैं अपने-आपसे। आज के दौर में मुस्कुराते चेहरे दिखते ही कितने हैं! न जाने हँसी और प्रेम को भूल लोग व्यर्थ के तनाव और ईर्ष्या को क्यों गले लगा बैठे हैं। हर बीते पल के साथ जीवन हाथ छोड़ता जा रहा है फिर भी कुछ लोग साथ की महत्ता नहीं समझ सके! समंदर के साथ-साथ मीलों चलना चाहती हूँ ये जाने बिना कि न जाने उस आख़िरी छोर पर क्या होगा, कुछ होगा भी या नहीं! पर मैं उस तक पहुँचना चाहती हूँ। मछुआरे जाल फेंकते हैं, उनका समूह एक साथ गाते हु