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कुछ धागे उलझे हुए (कहानी स (in Hindi)
डॉ. दिवा&#
Synopsis "कुछ धागे उलझे हुए (कहानी स (in Hindi)"
उम्र के साथ- साथ मेरा कहानी बस बीस-बाईस साल की उम्र तक बढ़ी और उस कहानीकार दिवाकर को शायर और कवि ने छुपा दिया। आज उम्र के तैंतालीसवे साल में जब कहानियाँ लिखी तो ये महसूस हुआ की ये कोई आसान काम नहीं है, हाँ विचारो को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता है, पत्रों का चयन, घटनाकर म को मोड़ना, दिशाएँ बदलना, अपनी मन स्थिति को पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करना ये सभी बातें कहानीकार का दायरा बहुत बड़ा कर देती है। इस संग्रह में आपको बाल मानोविज्ञान को अभिव्यक्त करती कहानियाँ 'एक गुनाह छोटा-सा', 'कुछ गंदली हुई राहे' और 'मासूम निगाहे' मिलेगी वास्तव में इन कहानियों को उम्र के उस पड़ाव पर लिखा गया जब स्वयं मैं बालक ही था। 'कुछ धागे उलझे हुए थे, ' 'और साँझ ढल गई', 'शून्य की खोज में', 'डार से बिछुड़ी', 'मशीन चलती रही', कहानियाँ जीवन के बहुत नजदीक है आपको लगेगा की कहानी के पात्र आपके आस - पास ही है सही मायनों में ये कहानियाँ यथार्थ के करीब है। महानगरों के जीवन से, यहाँ के लोगों से प्रभावित होकर 'फिर सच को मार दिया उसने' और कुछ धागे उलझे का हुए सृजन किया। बम्बई में जीवन का पंद्रह वर्ष लम्बा पड़ाव रहा। नाम और शेहरात देकर इस महानगरी ने मुझे अपना बना लिया। कलकत्ता का बेगानापन व्यक्त